Wednesday, May 11, 2022

आत्मचिंतन

       इंसान एक सामाजिक प्राणी है,एक इंसान अकेला कुछ नहीं कर सकता है।एक दूसरे के प्रति कर्तव्य से बंधे हुए है सब।भारतीय संस्कृति में सयुक्त परिवार की प्रथा थी मगर आज जरूरत ज्यादा होने की वजह से एकल परिवार की परंपरा चल निकली है ।माता पिता के रोजगार में लगे होने से बच्चों का मानसिक विकास ,प्रेम पूर्ण व्यवहार नहीं हो पाता है इसके विपरीत मानसिक तनाव होना आम बात हो गई है ऊपर से हीन भावना ये है की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उसे अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता है तो मन कुंठित होता है बह जब अपने जीवन पर गौर करता है तो पाता है की जीवन बस चल रहा है।उसमे कोई आनंद नहीं है जीवन अभिशाप सा लगता है ।सच्चाई कम और पाखण्ड ज्यादा लगता है। क्योंकि यदि सब कुछ सही है तो ये नरकीय जीवन जीने को इंसान दुभर नहीं होता।कहीं न कहीं हम सब लोग सामूहिक रूप से गलत कर रहे है इसे जितना जल्दी स्वीकार कर लें तो सायद कुछ सही हो जाए ,जितना इसे स्वीकार करने में जितनी देर करेंगे उतना ही हम गलत करेंगे। बल्कि जो हो रहा है उसे ही सही मान कर चलते रहेंगे  तो  सच में बदतर स्थिति हो जाएगी ।                                                                          हमारे सामने बहुत सारे विषय है सामाजिक ,आर्थिक और धार्मिक इनके बारे में हम कभी सोचते नहीं है ,जो हो रहा है होने देते है ।हमने अपने चारों ओर ताले जड़ दिए है और ये ताले इतने पुराने हो चुके है की इनमे जंग लग चुकी है।हमे इन बंद तालों में ही रहना सुरक्षित महसूस होता है। कूपमंडुक की तरह मनुष्य बाहर निकले की सोचता ही नहीं है।मुमकिन है की बाहर आजादी हो ,आनंद हो ।दरअसल हम जिंदगी को भाग्य और भगवान के भरोसे जीते आ रहे है जबकि भाग्य के बारे में तो गीता में उल्लेख है की कर्म प्रधान होता है।कर्महीन मनुष्य का भाग्य भी साथ नहीं देता है भगवान भी उन्ही का साथ देते है जो कर्म करता है।                                    इस संसार में ज्ञान का भंडार भरा हुआ है जो जीवन में कभी भी पूरा नहीं होगा।सच ये है की इंसान ये मान चुका है की सत्य की प्राप्ति बड़ी कठिन है इसलिए वो उल्टे सीधे तरीकों से धन का अर्जन करना चाहता है जितना अधिक धन होगा उतना अधिक मन सम्मान मिलेगा ये भ्रम पाल लिया है इंसान ने।धन एक साधन है साध्य नहीं है ।धन से स्नेह नही खरीद सकते है मानवता नहीं खरीद सकते है।धन तो कभी कभी जीवन को संकट में डाल देता है।धन इतना होना चाहिए जितना आपकी कार में पेट्रोल ।जब तक जीवन रूपी कार चले तब तक धन रूपी पेट्रोल की आवश्यकता है यदि केन भर भर कर अगर कार में पेट्रोल रख लेंगे तो दुर्घटना होना लाजिमी है। यदि आपके पास धन नहीं है और आपका परिवार खुशहाल है तो ये सुखमय जीवन है और सफल भी।     हमारा कहने का उद्देश्य है की आप यदि विवेकशील है तो धारणाओं का विरोध करना सीखो ।दुनिया में कितने सारे मत है किसी के मत से सहमत मत हो।यदि आपका विवेक काम करना शुरू कर दे तो आप दूसरों के मत का समर्थन नहीं करेंगे।आपका अवचेतन मन सक्रिय रहना चाहिए,खुद की सोच विकसित होनी चाहिए।आपको गलत परम्पराओं का विरोध करना होगा ,विरोध करने से जागृति आती है।

Monday, February 1, 2021

Affiliate marketing

 दौसतॏ नमसकार।‌‌  affiliate marketing aaj ke samay ka krantikari system hai .doston kisi ka prachar to hum jane anjane me to karte ho hai .yadi iscprachar ke badale kuchh income bhi mil jaye to kitana achchha. ho.ye hi hai kisi ke product ko aapke dwara pramote kiya jana

आत्मचिंतन

       इंसान एक सामाजिक प्राणी है,एक इंसान अकेला कुछ नहीं कर सकता है।एक दूसरे के प्रति कर्तव्य से बंधे हुए है सब।भारतीय संस्कृति में सयुक्त ...